Thursday, January 27, 2011

भास्कर के मुखिया का काला chittha किताब ’कलिनायक’ 100 रुपए में

महानतम किताब ’कलिनायक’ 100 रुपए में

सफल, मस्तीभरा जीवन जीने व 2 करोड़ के ईनाम जीतने के लिए, इक्कीसवीं सदी की महानतम किताब ’कलिनायक’ को 100 रुपए में खरीदें या http://www.rajasthankalinayak.net/ से मुफ्त डाउनलोड करें।
प्रकाशक- राजस्थान कलिनायक प्रकाशन, बीकानेर।

फोन
.0151-22000269, 09636003115

''भास्कर'' को निपटा रहा ''पत्रिका'' दमादम

बिल्डिंग निर्माण में नियम ताक पर
विनय जी. डेविड // मोबाईल :- 98932 21036
(भोपाल // टाइम्स ऑफ क्राइम)

जबलपुर। सिविक सेन्टर में निर्माणाधीन '' भास्कर'' की बिल्डिंग में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। भाजपा विधायक हरेंद्रजीत सिंह बब्बू ने मामले की शिकायत जल संसाधन एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया से की। मामले की गंभीरता को देखते हुए मलैया ने कलेक्टर को जांच कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए। वहीं भवन में अनियमितता की शिकायतों पर नगर निगम ने अपनी जांच पूरी कर ली है। मामले में शीघ्र ही सख्त कार्रवाई की तैयारी चल रही है। जानकार सूत्रों के अनुसार सिविक सेन्टर स्थित 20 हजार वर्गफीट भूमि पर ''दैनिक भास्कर'' नियमों को ताक में रखकर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का निर्माण करा रहा है। लगभग चार साल पहले नगर निगम ने इस भूमि पर चार मंजिला भवन बनाने के लिए अनुमति दी थी।भास्कर प्रबंधन ने नक्शे को ठेंगा दिखाते हुए छह मंजिला भवन तान दिया। इतना ही नहीं आवंटित जमीन से कहीं अधिक हिस्से पर निर्माण करा लिया। दुस्साहस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक निगम ने संशोधित नक्शा पास नहीं किया। संशोधित नक्शा पास करने का मामला निगम में विचाराधीन है। फिर भी निर्माण जारी है।
जमीन न पट्टा और नक्शा
पासजबलपुर सिविक सेंटर की भूमि हासिल करने के लिए सारी हदें पार करते हुए दैनिक भास्कर प्रबंधन ने भूमि खरीदने से पहले ही नक्शा पास करा लिया। संभवत: यह प्रदेश का पहला ऐसा मामला होगा जिसमें भूमि के स्वामित्व और कब्जे के बिना ही नक्शा पास करा लिया गया। दैनिक भास्कर के अवैध कार्य में नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय ने भरपूर सहयोग दिया। नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय में इसके लिए बकायदा डायरेक्टर राकेश अग्रवाल के नाम से गलत शपथ पत्र देकर कानून को ताक पर रख दिया गया।
वर्ष 2007 में अनुज्ञा, 2008 में भूमि का
पंजीयनसिविक सेंटर में बहुमंजिला भवन के निर्माण के लिए भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर राकेश अग्रवाल के शपथ पत्र पर भवन निर्माण की अनुज्ञा के लिए 10 मई 2007 को आवेदन किया गया। आवेदन पर 3 अक्टूबर 2007 को पत्र क्रमांक 1855 के द्वारा ले-आउट स्वीकृति की अनुज्ञा जारी हुई। जबकि इस तारीख में दैनिक भास्कर के पास उक्त जमीन का मालिकाना हक ही नहीं था।जबलपुर विकास प्राधिकरण ने 2006 में एकतरफा कार्रवाई करते हुए पंचनामा के द्वारा भूमि का कब्जा भी वापस ले लिया था। आश्चर्यजनक बात है कि इसके चार माह बाद उक्त भूमि की लीजडीड का पंजीयन हुआ। जबलपुर विकास प्राधिकरण ने 30 जनवरी 2008 को कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से लीजडीड का निष्पादन किया। लीजडीड का विधिवत पंजीयन पंजीयक कार्यालय में पुस्तक क्रमांक ए-1, ग्रंथ क्रमांक 23 के पृष्ठ क्रमांक 99 से 103 पर अंकित किया गया।
अनुज्ञा और पंजीयन में नाम का फेर
जेडीए ने जनवरी 2008 में सिविक सेंटर की भूमि का पंजीयन कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से किया। जबकि चार माह पूर्व ही नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय से भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अनुज्ञा प्राप्त कर ली गई। नक्शे और लीजडीड में स्वामित्व के अंतर को मिटाने के लिए 17 अपे्रल 2008 को मात्र 100 रूपए के स्टाम्प पर शुद्धि विलेख कराया गया। इसमें भी शासन और जेडीए को स्टाम्प शुल्क और ट्रांसफर फीस की लाखों रूपए की राशि का चूना लगाया गया।
जमीन न पट्टा फिर भी नक्शा पासस्वत: निरस्त होने का प्रावधान
भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय द्वारा जारी अनुज्ञा में स्पष्ट लिखा है कि किसी प्रकार के विवाद की स्थिति में अनुज्ञा स्वत: ही निरस्त हो जाएगी। इसको दरकिनार करते हुए नगर निगम एवं अन्य विभाग में इसी अनुज्ञा का उपयोग किया गया।
ऎसे चला घटनाक्रम
  • 17 जून 2003- जेडीए ने विश्वम्भर दयाल अग्रवाल के वारिसानों के नाम से लीजडीड का निष्पादन किया। लीजडीड का बकायदा पंजीयन कराया गया।
  • 30 जनवरी 2008- पुरानी लीज के वैधानिक निरस्तीकरण के बगैर दूसरी लीजडीड का निष्पादन हुआ। दूसरी लीजडीड कैलाश अग्रवाल प्रबंध संचालक दैनिक भास्कर के नाम से पंजीकृत कराई गई।
  • 25 मार्च 2008- सिविक सेंटर की उक्त भूमि पर भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा गया। सिडबी से ऋण के लिए इसकी आवश्यकता बताई।
  • 17 अपे्रल 2008- सौ रूपए के स्टाम्प पर शुद्धि विलेख का पंजीयन कराया गया। इसमें दैनिक भास्कर के स्थान पर "भास्कर प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड", जोड़ दिया गया।

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वहीं प्रथम और दूसरा अध्याय भी पाठकों को उपलब्ध कराया है अब इस अंक में आपको बीच का एक अध्याय प्रस्तुत कर रहे है जो इस किताब का प्रकाशित अंश है......

कलिनायक किताब में प्रकाशित
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तीसरा अध्याय*************************
ग्वालियर का फर्जीवाड़ा
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वह शतरंज का बाजीगर बन गया था।कारण कि, उसकी शतरंजंज के नियम-कायदे वह खुदुद अपने हिसाब से, तय करने लगा था। केवल उसका घोड़ा... ढाई घर तिरछा नहीं,बल्कि जहां चाहे, वहां वार करता था। उसने शतरंज की अपने मन मुताबिक गोटियां फिट कर दीं तो शह और मात की झड़ी लग गई और उसके सारे विरोधी धूल चाटने लगे। वे सफेद खानों पर चारों खाने चित्त हो गए, मगर वह तो काले खानों पर तांडव मचाता मोहरों को मसलता हुआ खुश होता रहा। यह शतरंज का अनूठा खेल कोई और नहीं, कलिनायक खेल रहा था।
निशाने पर ग्वालियर
  • हर अध्याय में आपको रमेश के अलग-अलग दुर्गणों का ज्ञान होगा। इस अध्याय में आप पढगं़े कि पतैंरेबाज रमशे के पास ''काण्डों'' को अजंाम देने का दमखम है। बिना इसके ग्वालियर पर कब्जा करना कठिन था। ग्वालियर में किये गये काण्डों को सही-सही गिन पाना आसान नहीं है। पते की बात यह है कि रमेश के काले कारनामें, जिसे वह सतरंगी सपने मानता है, इनको कितने अक्षरों, शब्दों, वाक्यों में पिरोया गया, शायद ही गिना जा सके। हम इस अध्याय में आपको इसकी एक झलक एट ए ग्लांस दिखा रहे हैं:-
  • सिंिधया राजघराने की नगरी ग्वालियर से सचं ालित कम्पनी-भास्कर पब्लिकेशन एंड एलाइड इंडस्ट्रीज, की स्थापना द्वारका प्रसाद के द्वारा की गई थी।
  • इस अध्याय में दिए गए तथ्यों की सच्चाई के सबूतों का अवलोकन करने के लिए दस्तावेजों का संलग्न सीडी में संकलन किया गया है। इससे ''कलिनायक'' की ''करतूतों'' के प्रमाणों से मुखातिब हुआ जा सकता है।
  • करतूतें खोलने से पहले आपको बता दिया जाए कि इस कम्पनी में द्वारका प्रसाद के परिवार के व्यक्तियों के दो गुट बन गए थे। एक गुट द्वारका प्रसाद, उनकी अर्धांगनी किशोरी देवी, और उनसे पैदा हुई हेमलताके अलावा द्वारका प्रसाद के अनुज विशम्भर दयाल का था। और दूसरा गुट द्वारका प्रसाद की पहली पत्नी कस्तूरी देवी के पुत्र रमेश, रमेश की पत्नी शारदा और रमेश की हॉं में हॉं मिलाने वाले खासमखास देवेन्द्र तिवारी का था। ये सब रमेशी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे।अब रमेशचन्द्र की नजर इस कंपनी पर पड़-गड़ गई।
रमेश की चाहतकर लं ग्वालियर मु_ी में
  • शुरू-शुरू में कम्पनी में रमेश का गुट अल्पमत में था। रमेश-पक्ष का वजन तो कम था। मगर लिप्सा का प्रेशर कुकर उसके दिमाग में फटने को तैयार था। इसलिए रमेश अपने पिता को हटाकर कम्पनी का मालिक बनना चाहता था। कंपनी का मालिक बनने तक जनाब का हाल-बेहाल था।
  • ग्वालियर का भी बनू... मै मालिक,
  • अब उसका ये नया एजेंडा था। अपने हड़पिया मंसूबे को पुरा करने के लिए जरूरी था कि रमेश गटुका कम्पनी में बहुमत हो। मौजूदा हाल में रमेश अपने बाप, बहन और चाचा के शेयर तो हड़प नहीं सकता था। समस्या का मगरमच्छ मुंॅह फैलाए खड़ा था। समस्या ये थी कि कम्पनी का मालिक कैसे बना जाये? कौन सी शतरंजी चाल चली जाए कि कपंनी जबड़े में जकड़ लें ? आखिरकार कैसे आए॥

मालिक बनू तो बनू कैसे?
  • बहुमत में आने के लिए आखिर क्या करें? इसे कहते हैं- कुर्सी की वासना। अपने नापाक उद्देश्य की पूर्ति हेतु उल्टी गंगा बहाने में विशेषज्ञ रमेश ने कूट-योजनापूर्वक कम्पनी पर कब्जा करने के लिए क्या षड्यंत्र रचा,उसने कैसी चालें चलीं, कैसे षडय़ंत्रों की गटरगंगा वही, आइये पाठकों, आप भी इसे जानिए:-ग्वालियर में बिछी बिसात, औैर यह थी रमेश की पहली सफलशतरंजी चाल... हड़पने के लिएशेयर कैपिटल बढ़ाकर, अकेले हड़पे वे सारे शेयर और बन बैठा मालिकहसबसे पहले रमेश ने मनमाने (Arbitrary) गैरकानूनी (illegal) और गलत (Wrongfull) तरीके से शेयर कैपिटल को बढ़ाया।हदस से तीस पर आया रमेेश-वह सन् 1987 के जुलाई माह का नौवा दिन था। जब रमेश ने अपने पिता की गरै हाजिरी में आयोजित मीटिंग में कम्पनी की शेयर कैपिटल दस हजार से बढ़ाकर तीस हजार कर दी।
  • रमेश ने ग्वालियर की कंपनी के अतिरिक्त शेयर किसी को जानकारी दिये बिना जारी कर दिये। और बाद में बढ़े हुए ये 6,603 शेयर किसी भी अन्य शेयर होल्डर को ऑफर नहीं किये।
  • वो सारे के सारे शेयर अपने माता-पिता, बहन या चाचा के नहीं बल्कि रमेश ने खुद अपने नाम पर आवंटित कर दिये। इस तरह खुद रमेश ने ही उन शेयरों को खरीद लिया।ग्वालियर की बिसात में रमेश की पहली चाल ने ही बाजी पलट दी:-सारे शेयर हड़प कर, कम्पनी अपनी बनाईरमेश ने यह सब फर्जीगिरी इसलिए की ताकि वह बढ़े हुए शेयर अपने नाम पर कर कपं नी पर अपना सिक्का जमा सके। हड़पे शेयेयरों की बदौलत रमेश गुट बहुमत में आ गया और रमेश के पिता का गटु अल्पमत में आ गया। वाह-वाह....क्या अनूठी चाल चली। खुद ही विक्रेता और खुद ही ग्राहक।
  • गैर कानूनी जोड़ तोड़ से कानून हुआ आहत
  • यही वो शातिर तरीका था...जिससे चतुर रमेश ने कंपनी-एक्ट और आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन के सारे प्रावधानों को धता बता कर गैरकानूनी तरीके से ग्वालियर की कंपनी को अपने कब्जे में ले लिया। कपट का ऐसा प्रहार कि, कानून हुआ तार-तार।
  • पिता का गुट मेमने की तरह मिमियाता और हाथ मलता रह गया। इस प्रकार रमेश के पहले ही वार ने मचाया हाहाकार। आस्तीन के सांप से डसे, अल्पमत का तो यही हश्र होना था कि उसके प्यादे पिट जाएं, उसके साथ इससे कम कुछ हो ही नहीं सकता था।
  • इस तरह दैनिक भास्कर ग्वालियर का साम्राज्य हड़पने की रमेश की काली इच्छा पूरी हो गई तो एसेे रमेश औैरंगजेबी अंदाज में कम्पनी का सर्वेसर्वा बन बैठा।
    लगातार.....
  • .नोट:- इस द्वंद युद्ध के पीछे की जानकारी का भी हम शीघ्र खुलासा करेंगे। इस खबर पर कमेन्टस हमारी बेबसाइट www.tocnewsindia. blogspot.com एवं timesofcrime@gmail.com पर भेज सकते है। वहीं जानकारी साझा करने के लिए संपर्क कर सकते हं।

Wednesday, January 19, 2011

नायक नहीं खलनायक हॅू मैं..

विनय जी. डेविड // मोबाईल :- 98932 21036
(भोपाल // टाइम्स ऑफ क्राइम) 
 

सभी ने खलनायक फिल्म देखी होगी जिसका नायक संजय दत्त था परन्तु उसकी भूमिका पूरी की पूरी खलनायक जैसी थी। यहीं हाल करके रख दिया है रमेश का। राजस्थान कलिनायक प्रकाशन की एक किताब ''कलिनायक''  ने।
इस किताब का मकसद ''कलियुग के नायक'' का जनता के बीच चेहरा दिखाने का है। इस किताब में संग्रह काफी रोचक है वहीं सच्चाई और दस्तावेज का भण्डार है आप सोच रहे होंगे आखिर इसमें ऐसा है क्या और किताब का नायक, खलनायक कौन है, तो हम बता देते हैं खुले दिल जान से इस किताब के लेखक सजीव जैन और धर्मेन्द्र वर्मा ने पूरी जद्दोजहद के पश्चात तथ्यात्मक जानकारी जुटाकर देश के सबसे बड़े समाचार पत्र दैनिक भास्कर के मुखिया रमेशचन्द्र अग्रवाल के घपलेबाजी, जालसाजी और षडय़ंत्रपूर्वक जमा की गई अकूत पूंजी का विवरण है। लेखकों ने बड़ी चतुराई से 17 अध्याय में जानकारी को पेश किया है कलिनायक किताब के अध्याय के शीर्षक ही इतने प्रभावी है जो षडय़ंत्र का खुलासा कर दे रहे हैं। पूरा अध्याय धुरन्धर समाचार-पत्र दैनिक भास्कर के चेयरमेन के एक एक कारनामों को प्रदर्शित कर रहा है,
आखिर इतने बड़े बड़े घोटाले और समाज सरकार में भनक भी नही. इस बात को दर्शाती है कि ये सरकार और घटिया घटिया खबरों को प्राथमिकता देने वाला मिडिया आज इन चालबाजों के आगे नपुंसक बन गया हैं। वहीं इस किताब का विज्ञापन दैनिक-भास्कर के अंक दिनांक 06 जनवरी 2011 में प्रकाशित होकर देश, दुनिया के कोने कोने तक पहुंच गया वहीं इस प्रकाशक ने किताब के साथ एक बेबसाइट भी अपने पाठकों को प्रदान की जो www.rajasthankalinayak.com व नाम से की गई, परन्तु इस बेबसाइट पर दैनिक भास्कर के प्रमुख रमेश अग्रवाल की पोल खुलते ही इस पर हमला हो गया और इस बेबसाइट को दुष्प्रवृति ''छुपाने के लिए ''विरोधियों ने हेक करवा दिया, वहीं षडय़ंत्र चाले चलकर इस बेबसाइट को बन्द करवा दिया, जबकि पाठकों ने इस बेबसाइट को खुब सर्च किया, लाखों पाठकों ने अपनी क्लिकिंग दर्ज करवा दी, जबकि कई लोगों ने इस ओछी हरकतों की भत्र्सना कर ये जान लिया कि कहीं न कहीं सच्चाई को फांसी चढ़ाने की कोशिश की गई। प्रथम पृष्ठï का शेष....
परन्तु प्रकाशक अपनी किताब की लोकप्रियता को देखते हुए दूसरी बेबसाइट बनाने का निर्णय  लिया और पुन: कामयाब होकर फिर अपने चाहने वालों को www.rajasthankalinayak.net  पर इस किताब और दस्तावेजों को संकलन कर जनता दरबार में पेश कर दिया वहीं दैनिक भास्कर के रमेश और इसकी रणनीति को नंगा कर दिया। सोचनीय पहलू यह है कि इस किताब में दिये गये तथ्यों और फ्री सीडी में उपलब्ध दस्तावेजों से ये ज्ञात होता है कि वाकई आगे बढऩे के लिए कानून, नियमों और सरकार को जूतों की नोक पर रखना जरूरी है इन दस्तावेजों ने ये प्रमाण प्रस्तुत कर दिया।
इस विवादित किताब ने मीडिया के सबसे बड़े ग्रुप की पोल खोल कर न जाने कौन सी सुरमाई दिखाई है और इनका मकसद क्या है परन्तु यह सत्य है कि दैनिक भास्कर की धौस के आगे बाकी मीडिया में दमखम नजर नहीं आता वे सच्चाई की दृष्टि से ना.... ही माने जायेगें। जबकि चोर, ऊचकों की खबरों को प्राथमिकता देने वाले ये समाचार पत्र, टीवी न्यूज चेनल घण्टों की खबर कई कालमों की खबरे बेधड़क प्रकाशित करते हैं परन्तु इस अरबो खरबो के खुलासे के बाद मुरदों की मानिन्द पड़े है ऐसा लग रहा है जैसे इस मीडिया को कुत्ता भी खींच ले जाये तो ये कुछ नहीं बोलेंगे, ना लिखेंगे। परन्तु कुछ लोगों ने पत्रकारिता के दायित्व को निभाते हुए इस खबरों को प्रकाशित करना अपना कत्र्तव्य समझा और जनता के बीच खबरों को प्रकाशित किया और सच्चाई का साथ दिया। प्रश्र यह उठता है कि भ्रष्टाचार दहाड़ रहा है और प्रशासन साथ दे रहा है और मीडिया नपुंसक बन गया है। ऐसी किताब का जनता को अवलोकन करना चाहिये और तय करना चाहिए कि आखिर इस सफलता का राज क्या है ताकि असफल रह गये लोग भी आगे बढ़ते रहे और सफलता प्राप्त करें।
इस कलिनायक किताब को पढ़कर आपके पास  करोड़ पति बनने का भी अवसर है बकायदा इस किताब प्रकाशक राजस्थान ''कलिनायक '' प्रकाशन बीकानेर राजस्थान ने दो करोड़ के बम्पर ईनाम की प्रतियोगिता आयोजित की है ''टाइम्स ऑफ क्राइम'' ने अपने पिछले अंक में इस योजना को प्रकाशित किया है वहीं प्रथम अध्याय भी पाठकों को उपलब्ध कराया है अब इस अंक में आपको बीच का एक अध्याय प्रस्तुत कर रहे है जो इस किताब का प्रकाशित अंश है......
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कलिनायक किताब में प्रकाशित
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दूसरा अध्याय

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रमेश का ऑपरेशन भोपाल
इस अध्याय में दिए गए तथ्यों की सच्चाई के सबूतों का अवलोकन करने के लिए दस्तावेजों का संलग्न सीडी में संकलन किया गया है। इससे ''कलिनायक'' की ''करतूतों'' के प्रमाणों से मुखातिब हुआ जा सकता है।
फर्जी सेलडीड
राजधानी भोपाल की दैनिक भास्कर की संपत्ति को हड़पने के लिए रमेश ने एक फर्जी सेटेटलमेेन्ट डीड बनाई, साथ में एक फर्जी करारनामा यानी एग्रीमेन्ट ऑफ सेलेल 13 मार्च 1985 को तैयार किया।
फर्जी डीड कहे-
रमेश को बनाओ मालिक
  •  रमेश के बनाए उस इकरारनामे यानी एग्रीमेन्ट में लिखा था कि द्वारका प्रसाद ने दैनिक भास्कर के भोपाल पब्लिकेशंस के यानी दैनिक भास्कर के भोपाल क्षेत्र के टाइटल अधिकार और गुडविल को रमेश की कंपंपनी यानी मेसर्स राइटर्स एंड पब्लिशर्स को पॉंच लाख रुपये में बेच दी है।
  •  रमेश के उस जाली एग्रीमेन्ट में यह भी लिखा था कि मेसर्स द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स की 4764 वर्गफीट भूमि, जो प्लाट नं. 6, प्रेस कॉम्पलेक्स, महाराणा प्रताप नगर भोपाल में स्थित थी, को भी साथ में रमेश की कंपनी को बेच दिया गया है।
  •  ध्यान रहे कि मैसर्स राइटर्स एंड पब्लिशर्स कंपनी रमेश चन्द्र अग्रवाल की मालिकाना हक वाली कंपनी है। मैसर्स राइटर्स एंड पब्लिशर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर की हैसियत से रमेश ने ये एग्रीमेन्ट किया है, ऐसा उस एग्रीमेन्ट में दिखाया गया था।
  •  दरअसल, वह एग्रीमेन्ट पूर्णत: फर्जी था। यह तो अपनी अलग कंपनी बनाकर अपनी कंपनी में दैनिक भास्कर को गटकने का चक्रव्यूह रचा था रमेश ने।
चलिए, अब भोपाल में किए गए रमेेश के इस फर्र्जीवाड़े को परत दर परत जानें:-
पहला फर्जीवाड़ा-
एग्रीमेन्ट को बताया सेल डीड
  • मजे की बात यह है कि रमेश का वह कथित एग्रीमेन्ट सिर्फ एग्रीमेन्ट करारनामा था न कि सेलेल एग्रीमेेन्ट विक्रय पत्र। करार और विक्रय पत्र में जमीन और आसमान का अंतर होता है।
  •  उस एग्रीमेन्ट में यह भी लिखा था कि रजिस्ट्री के बाद बाकी का पैसा दिया जायेगा। जो कि कभी नहीं दिया गया। क्योंकि यहां अब हुआ:-
 दूसरा फर्जीवाड़ा-
बिना रजिस्ट्री... मालिक बने रमेश
  •  द्वारका प्रसाद ने उक्त एग्रीमेन्ट के आधार पर रमेश के पक्ष में कभी कोई रजिस्ट्री नहीं की।
  •  न ही उस एग्रीमेंट पर फर्म के चारों हिस्सेदारों जैसे विशम्भर और द्वारका के हस्ताक्षर थे। अगर ये थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि द्वारका ने हस्ताक्षर किये तो भी बाकी हिस्सेदारों ने यह एग्रीमेंट करने के लिए उन्हें कोई अथारिटी नहीं दी थी। परंतु:-
  • रमेश ने शासन-प्र्रशासन के साथ मिलकर उक्त जमीन को और रजिस्ट्रार, न्यूज पेपर ऑफ इंडिया के साथ मिलकर दैनिक भास्कर भोपाल का टाइटल अधिकार अपनी कंपनी राइटर्स एंड पब्लिशर्स के नाम करा लिया।
  • रमेश से सीखें कि, बिना रजिस्ट्री के मालिकाना हक कैसे हासिल किया जाता है। यह आर्ट आपको कहीं और ढूंढे से भी नहीं मिलेगी।
इस तरह अवैध-फर्जी एग्र्रीमेन्ट का रमेश ने उठाया पूरा लाभ। और इस तरह हुआ:-
तीसरा फर्जीवाड़ा-
मफ्त में हासिल की ... करोंड़ों की संपत्ति
  • धोखे का धंधा करने वाले रमेश ने फर्जी एग्रीमेन्ट तो बनवाया ही, ऊपर से खुद ही एक लाख रुपए भास्कर पब्लिकेशंस के नाम पर जमा किये आरै उसी ने अपने रुपए खुद ही वापिस भी निकाल लियेे। वास्तव में रमेश ने कभी उस विक्रय के लिए कोई भुगतान किया ही नहीं था। इसे कहते हैं.
...सांप भी मर गया और लाठी भी न टूटी।
  • वह सेल-डीड रजिस्ट र्ड भी नहीं थी। और इस प्रकार रमेश ने फर्जी सेल-डीड पर लगने वाली स्टाम्प ड्य्यूटी के पैसे भी बचा लिये। और फिर हुआ:-
चौथा फर्जीवाड़ा-
कानून के विपरीत किया एग्रीमेन्ट
  •  ध्यान रहे कि अगर मैसर्स द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स के सभी पार्टनर एक साथ मिलकर भी इस तरह का एग्रीमेन्ट करना चाहते तो भी रमेश की कंपनी के साथ ऐसा एग्रीमेन्ट करने का उन्हें कानूनन कोई अधिकार नहीं था।
  • यहॉं यह प्रश्न उठता है कि जब दैनिक भास्कर टाइटल की मालिक फर्म है और फर्म में कुल चार हिस्सेदार हैं और वे चारों के चारों ही अगर दैनिक भास्कर, भोपाल का मालिकाना हक रमेश को बेचना चाहते हैं, तो
फिर आखिर उन्हें:-क्यों नहीं था बेचने का अधिकार ?
  •  कारण कि, प्र्रेसेस एंड रजिस्टे्रशन एक्ट के अनुसार एक राज्य में एक नाम के अखबार के दो मालिक नहीं बन सकते।
  •  दैनिक भास्कर का भोपाल का टाइटल अधिकार मेसर्स राइटर्स एंड पब्लिशर्स कंपनी को हो और ग्वालियर, इंदौर का मेसर्स द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स को हो, इस तरह का एग्रीमेन्ट करना गैरकानूनी था। इसलिए वह एग्रीमेन्ट कानून की नजरों में शून्य था।
सफलता का कलियुगी फंडा
  • इस घटनाक्रम से सफलता का कलियुगी ''रमेशी'' फंडा यही निकलता है कि...'' जाली दस्तावेज बनाने से पहले अच्छे वकील से मशविरा कर लो।''
  • यह गलती बाद में रमेश को समझ में आई कि उसने ऐसा एग्रीमेन्ट बना लिया है, जो कानूनन हो ही नहीं सकता। आगे आप पढ़ेगें कि इस फर्जीवाड़े को रमेश ने दूसरा फर्जीवाड़ा करके सुधारा यानी आग से आग बुझाई। कर दिया न कमाल?
  • 1985 में रमेशचन्द्र अग्रवाल ने ''फर्जी दस्तावेज'' के आधार पर दावा किया कि दैनिक भास्कर भोपाल संस्करण का टाइटल मैसर्स राइटर्स एंड पब्लिशर्स लि. को हस्तांतरित हो गया है, जिसका स्वामित्व रमेशचन्द्र अग्रवाल के पास है। इस ''फर्जी दस्तावेज'' ने एक तरफ उनके पिता एवं चाचा के बीच और दूसरी ओर बेटे रमेश अग्रवाल के बीच मुकदमों की श्रृंखला शुरू कर दी।
आइए, अब देखें कि अपनी ही औलाद के कारनामों से परेशान द्वारका प्रसाद ने इस रमेश-फर्जीवाड़े के संबध में क्या किया:-
द्वारका प्रसाद ने की कलेक्टर से शिकायत
14 दिसम्बर 1987 को द्वारका प्रसाद अगव्राल ने कलक्ेटर जबलपुर को एक पत्र सौंपा। जिसके माध्यम से रमेश की जालसाजी को उजागर किया गया। इस पत्र को जस का तस नीचे प्रस्तुत कर रहें हैं-

श्रीमान् जिलादण्डाधिकारी महोदय,
जिला जबलपुर मध्यप्रदेश।

विषय:- डी.पी. अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स, झांसी दैनिक भास्कर, भोपाल के श्री रमेश अग्रवाल द्वारा दैनिक भास्कर, जबलपुर का वाद प्रस्तुत किया गया था, उसके संबंध में।
महोदय जी,
सेवा में निवेदन है कि मैं द्वारकाप्रसाद अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स रजिस्टर्ड  फर्म का मालिक एवं पाटर्न रहं। दैनिक भास्कर पत्र का स्वामी द्वारका प्रसाद अग्रवाल एण्ड ब्र्रदर्स रजिस्टर्ड फर्म है। मरे पुत्र श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल ने आपके समक्ष फर्म के पार्टनर श्री विशम्भर दयाल अग्रवाल के विरुद्ध दैनिक भास्कर, जबलपुर के संबंध में जो प्रार्थना पत्र दिया था, मुझे आज ही विदित हुआ है कि उक्त प्र्रार्थना पत्र के साथ उन्होंने दैनिक भास्कर समाचार पत्र मैसर्स राइटर्स एण्ड पब्लिशर्स प्र्रा. लि. भोपाल को बेचने के संबंध में दिनांक 16.2.87 का लिखा हुआ संलग्न पत्र प्रस्तुत किया था। इस पत्र पर मेरे हस्ताक्षर नहीं है। उन्होंने यह पत्र अंग्रेजी में टाईप कराकर मेरे हस्ताक्षर जाली बनाकर आपके समक्ष पेश किया है। और यह पत्र उन्होंने इसलिए बनाया है कि जिससे वह आपसे अपने पक्ष में निर्णय ले सकें। निवेदन है कि उन्होंने पत्र में असत्य दिखाया है कि मैंने वह पत्र मैसर्स राईटर एण्ड पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, भोपाल के पत्र क्रमांक डब्लयू.पी./136/-दिनॉंक 12-2-1987 के उत्तर में दिनांक 16.2.87 को लिखा है। जबकि मुझे उनका उक्त पत्र नहीं प्राप्त हुआ है और न ही संलग्न पत्र मुझे भेजा है। इस पत्र के पढऩे से यह भी स्पष्ट नहीं होता कि पत्र कहां से भेजा गया है, यद्यपि लेटर पैड पर झांसी का पता 31 रानी महल लिखा हुआ है और साथ ही भोपाल ऑफिस अग्रवाल भवन सुल्तानिया रोड, भोपाल लिखा है।
निवेदन है कि 16.2.87 फरवरी को न मैं झॉंसी में था और न ही मैं 16.2.87 को भोपाल में था। साथ ही मेरा कहना है कि भोपाल का अग्रवाल भवन जिसमें दैनिक भास्कर, भोपाल का कार्यालय था, उसे खाली कर दिया गया था और उसको कई किरायेदारों को किराये पर दे दिया गया है। अत: वहां से लिखने का प्रश्न नहीं उठता है।
इस पत्र में यह भी गलत लिखा है कि मैंने दि.13 मार्च 1985 को इकरारनामा लिखकर अखबार दैनिक भास्कर का टाईटल मेसर्स राईटर्स एण्ड पब्लिशर्स, भोपाल को बेचने का इकरारनामा लिख दिया था और इसमें यह भी गलत लिखा है कि दिनॉंक 1.4.85 से फर्म द्वारका प्रसाद अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स का मालिकाना हक नहीं है और अखबार छापने का व्यापार बन्द कर दिया है।
यह झूठी बात उन्होंने धोखा देकर अपने पक्ष में फैसला कराने के लिए खुद लिखी है। उनकी ये बात अपने आप में झूठ है क्योंकि उन्होंने जबलपुर से दैनिक भास्कर प्रकाशित करने के लिए दिनॉंक 16-10-87 का घोषणा-पत्र आपके कार्यालय में दिनॉंक 20-10-87 को घोषित कर अपने हस्ताक्षर सहित पेश किया है जिसमें कॉलम न. 10 में मेसर्स डी.पी.अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स 31 रानी महल, झांसी को मालिक और अपने को उसका पार्टनर बताया है। संलग्न पत्र में यह भी झूठ लिखा है कि हम लोगों ने जबलपुर से दैनिक भास्कर प्रकाशित करने का अधिकार नहीं दिया है। जबकि सही बात यह है कि भास्कर प्रकाशन प्रा. लि. भोपाल को जबलपुर से दैनिक भास्कर प्रकाशित करने का अधिकार हमने दिया था।
दैनिक भास्कर, जबलपुर के माननीय मुख्यमंत्री द्वारा दिनॉंक 1.8.86 को होने वाले उद्घाटन समारोह में श्री रमेशचन्द्र अग्रवाल और उनके पुत्र मेरे साथ ही सम्मिलित हुए थे और श्री महेश प्रसाद अग्रवाल भी मौजूद थे, तब से लगातार दैनिक भास्कर जबलपुर से निकलता आ रहा है। अत: जानबूझकर यह झूठी बात उन्होंने अखबार बन्द करने के लिए लिखी हैै। मेरे जाली हस्ताक्षर बनाकर जाली पत्र बनाकर उन्होंने कैसे किया है। अत: उनका यह कार्य अपराध है। उचित कार्यवाही हेतु पुलिस को प्रकरण भेजने की कृपा करें।
दिनॉंक - 14.12.87 आवेदक
द्वारका प्रसाद अग्रवाल,पार्टनर
फर्म- द्वारका प्रसाद अग्रवाल एण्ड ब्रदर्स
निवासी 20 ललितपुर कॉलोनी
लश्कर, ग्वालियर।
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नोट:- इस द्वंद युद्ध के पीछे की जानकारी का भी हम शीघ्र खुलासा करेंगे। इस खबर पर कमेन्टस हमारी बेबसाइट  timesofcrime@gmail.com पर भेज सकते है। वहीं जानकारी साझा करने के लिए संपर्क कर सकते हंै।