Wednesday, February 2, 2011

जेडीए का नियम विरूद्ध कारनामा

  जबलपुर। दैनिक भास्कर को सिविक सेन्टर की जमीन देने में जबलपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की भी परवाह नहीं की। जिन नियमों की अवहेलना के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट का निर्णय निरस्त किया, जेडीए ने दैनिक भास्कर को उपकृत करने के लिए फिर वही गलती दोहरा दी। सर्वोच्च न्यायालय ने 13 जनवरी 2006 के आदेश में भूमि आवंटन के लिए नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम-1973 और मास्टर प्लान का कठोरता से पालन करते हुए भास्कर के आवेदन पर विचार करने के निर्देश दिए थे, लेकिन भास्कर प्रबंधन के दबाव में जेडीए ने निर्देशों के विपरीत निर्णय किया।

ये कहते हैं नियम
नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973, नगर तथा ग्राम निवेश (विकसित भूमि, गृहों, भवनों एवं अन्य संरचनाओं के व्ययन) नियम-1975 के तहत व्यावसायिक भूखंडों को ओपन ऑफर पद्धति के बगैर एकमात्र आवेदन पर देने का कोई प्रावधान नही है। खुला ऑफर देने के बाद ही आवेदन विचार किया जा सकता था। खास बात यह है कि नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय ने जेडीए की बैठक से तीन दिन पूर्व ही जेडीए के सीइओ को भेजे पत्र में बता दिया था कि सिविक सेंटर में दैनिक भास्कर को दी जा रही भूमि नगर विकास योजना में सार्वजनिक और अर्ध-सार्वजनिक उपयोग के लिए सुरक्षित है। भूमि का उपयोग आवेदक के प्रयोजन से भिन्न होने के कारण जेडीए को आवेदन निरस्त करना चाहिए था।

दैनिक भास्कर को हां, वायएमसीए को ना दैनिक भास्कर के आवेदन पर व्यावसायिक उपयोग के लिए भूमि आवंटित कर दी गई जबकि दूसरी संस्था वायएमसीए का आवेदन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि व्यावसायिक उपयोग के लिए भूमि ओपन ऑफर बगैर आवंटित नही की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश में मौजूदा आवेदन पर विचार करने की छूट दी थी, लेकिन बैठक में वायएमसीए की ओर से नया आवेदन नहीं देने के कारण आवंटन पर विचार भी नहीं हुआ।

चर्चा और कार्रवाई में अंतर
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद दैनिक भास्कर और वायएमसीए को सिविक सेंटर में भूमि आवंटन के लिए 24 मार्च 2006 को जेडीए की बोर्ड बैठक हुई थी। उपमहाधिवक्ता के अभिमत की जानकारी सदस्यों को दी गई। बोर्ड बैठक के मिनिट्स में संकलित उपमहाधिवक्ता के अभिमत इस तरह था, "आवेदन पर विचार करते समय जेडीए को सुनिश्चित करना होगा कि भूमि का उपयोग भूमि विकास योजना के अनुरूप हो, यदि आवेदकों द्वारा प्रस्तावित भूमि उपयोग विकास योजना के अनुरूप नहीं है तो उन्हें आवंटन की पात्रता नहीं होगी।" उल्लेखनीय है कि दैनिक भास्कर ने मूल आवेदन में उद्योग (प्रेस) के लिए भूमि आवंटन की मांग की थी। विकास योजना के विपरीत, ओपन ऑफर के बगैर दैनिक भास्कर को भूमि आवंटन करने में सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।

ये रहे मौजूद
बैठक में तत्कालीन अध्यक्ष विशाल पचौरी, सीइओ शिवेन्द्र सिंह, उपाध्यक्ष किरण खत्री एवं सुरेन्द्र राठौर, नगर तथा ग्राम निवेश के संयुक्त संचालक वी के शर्मा, पीएचई के अधीक्षण यंत्री ए एल कोरी और लोक निर्माण विभाग के सीइओ ए नेहरा उपस्थित थे। विज्ञापन बना लेकिन जारी नहीं हुआ।

जेडीए ने नियमों की अवहेलना भूलवश नही की, बल्कि दैनिक भास्कर के दबाव में नियमों को दरकिनार कर दिया। इसका सबसे बड़ा सबूत मार्च-2006 की शुरूआत में तैयार किया गया विज्ञापन है। विज्ञापन में दैनिक भास्कर को 20 हजार 850 और
वायएमसीए को 8000 वर्गफीट भूमि के लिए ऑफर आमंत्रित करने का प्रस्ताव था। सूत्रों के मुताबिक ये विज्ञापन बना, लेकिन दैनिक भास्कर के दबाव में कभी जारी ही नहीं हुआ। विज्ञापन में दोनों भूखंडों के लिए न्यूनतम कीमत 1929 रूपए प्रति वर्गफीट निर्धारित की गई। सदस्यों का घालमेल देखिए कि दैनिक भास्कर को ऑफर मूल्य से मात्र एक रूपए अधिक अर्थात 1930 रूपए प्रति वर्गफीट पर भूमि आवंटित कर दी गई। 
sabhar  - patrika


No comments:

Post a Comment